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Armaan's Birthday Special

कॉलम "शब्द संवाद"


5 जुलाई जन्मदिन पर विशेष

5th July Birthday Special

अरमान नदीम: बीकानेर के एक विचारशील कलमकार और शब्द संवाद के संवाहक ।   - इमरोज़  नदीम 

बीकानेर की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरती से उभरे अरमान नदीम, केवल एक नाम नहीं, बल्कि शब्दों के माध्यम से सत्य की गहराईयों को टटोलने, समाज को समझने और नए विचारों को जन्म देने वाले एक सशक्त युवा साहित्यकार  हैं। अरमान की कहानी एक ऐसे युवा के सफर की दास्तान है, जहाँ अल्पायु में ही गहरे चिंतन, आलोचनात्मक दृष्टि और सामाजिक संवाद की तीव्र चाहत ने अपनी जड़ें जमा लीं।

प्रतिभा का आग़ाज़: सोलह की उम्र में किताब और लेखन का जुनून ।

अरमान मेरा छोटा भाई है , तकरीबन मुझसे पांच साल छोटे अरमान ने मात्र 16 वर्ष की किशोरावस्था में अपनी पहली लघुकथा पर आधारित किताब " सुकून " लिखकर साहित्यिक जगत में अपनी पहचान बनाई। यह कोई साधारण उपलब्धि नहीं थी, यह उस असाधारण प्रतिभा, गहन चिंतन और सूक्ष्म विश्लेषण क्षमता का परिचायक था जो अक्सर अनुभवी और परिपक्व लेखकों में देखने को मिलती है।

16 वर्ष की आयु में हिंदी लघुकथा ने किताब लिखना और राजस्थान की तीन साहित्य अकादमियों से एक साथ पुरस्कृत होना अपने आप में एक रिकॉर्ड है । और इतनी कम उम्र में यह रिकॉर्ड हासिल करना भी अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है ।

अरमान की साहित्य में विधा भले ही लघुकथा और साक्षात्कार हो लेकिन साहित्य में आगाज़ उन्होंने कहानी लेखन से किया , कोरोना काल  लॉकडाउन में अरमान की पहली कहानी " सन्नाटे में शहनाई " राष्ट्रीय स्तर पर राजस्थान पत्रिका प्रकाशित हुई थी , तब आम लोगों , साहित्यकारों और रिश्तेदारों में भी एक हलचल सी मची की एक बालक किशोरावस्था में एक कहानी लिखता है और पहली कहानी ही राष्ट्रीय स्तर पर छप जाती है । फिर किताब " सुकून "  प्रकाशित होती  है जिसका लोकार्पण तत्कालीन जिला कलक्टर नमित मेहता के हाथों होता है । चर्चित साहित्यकार सतीश छींपा ने डायमंड बुक्स से प्रकाशित  अपने संपादन में " 21 युवा मन की कहानियां " में अरमान की कहानी शामिल कर सभी सवालों का एक ही जवाब दे दिया था ।

शायद ये कहानी और किताब इसके पिताजी ने लिख कर इसके नाम से छपवा दी होगी इसके बस की तो बात लगी नही और ऐसी बातें बनना स्वाभाविक भी था , क्योंकि पिताजी साहित्य में जाना माना नाम है , तब अरमान ने पापाजी से कहा था कि लोग मुझे प्रोत्साहन तो दे नहीं रहे बल्कि मुझसे पूछ रहे हैं कि पापा ने कहानी लिख कर छपवा दी होगी ,

तब पापा ने हम दोनों भाईयों को साथ बैठा कर एक बात समझी कि दूसरे क्या बोलते है वो बात बिल्कुल सुनो लेकिन तुम जो कर रहे हो उसे शिद्दत के साथ किए रखो और ऐसा काम करो कि लोगो की आलोचना स्वत ही तुम्हारी तारीफ में बदल जाए । ये बात हमारे मन में अंदर तक घर कर गई । इसका असर हम आज देख रहे है

की कहानी , लघुकथा और आलेख लेखन के साथ साथ अरमान ने साक्षात्कार विधा में भी आज अपना लोहा मनवाया है । लेखन की बात हो और युगपक्ष का ज़िक्र ना हो , ऐसा कैसे हो सकता है।  हज़ारों लेखकों की साहित्यिक पाठशाला युगपक्ष में हमारे परिवार की तीन पीढ़ियों को इसका विद्यार्थी होने का गौरव हासिल है । मेरे दादाजी अमीन साहब ने युगपक्ष के लिए आलेख लेखन किया । मेरे पिताजी नदीम साहब का अदबी सफर युगपक्ष से हुआ और अब हम दोनों भाई युगपक्ष विद्यालय के शिक्षार्थी हैं । प्रत्येक रविवार को दैनिक युगपक्ष में "शब्द संवाद" नाम से अरमान का कॉलम प्रकाशित होता है जिसमें अरमान देश ,विदेश की प्रसिद्ध हस्तियों से संवाद करते हैं । यह कॉलम निरंतर लोकप्रिय हो रहा है ।

मुझे याद है कि जब अरमान की किताब सुकून का लोकार्पण हुआ उसके कुछ दिनों बाद ही एक साहित्य अनुरागी महोदय का कॉल पिताजी के पास आया कि मैं आपसे मिलने आ रहा हूँ , स्वाभाविक सी बात थी हम बचपन से ही देख रहे है कि हमारे निवास पर साहित्य से जुड़े लोगों का आना जाना लगा ही रहता है । वो भी सिर्फ पिताजी से मिलने लेकिन इस बार कुछ अलग हुआ वो आए और बैठक में बैठते ही पिताजी से कहा कि मुझे अरमान से मिलना है , जैसे ही उन्होंने ये कहा तो पिताजी उनके आने का मंतव्य फौरन समझ गए लेकिन बोले कुछ नहीं , पापा ने अरमान को बुलाया  , तो वह सज्जन बोले कि नदीम साहब आप बीच में कुछ नहीं बोलेंगे , आपका तो बहाना था असल में यहां सिर्फ अरमान से ही मिलने आया हूं , वैसे तो पापा पहले ही समझ चुके थे लेकिन फिर भी उन्होंने हाँ में जवाब दिया ।

उन सज्जन ने अलग तेवर के साथ अरमान पर अपने सवालों की मानो बौछार कर दी , लेकिन उनके अनुमान के विपरीत अरमान ने हर सवाल का बेबाकी के साथ जवाब दिया , और उसके हर जवाब से उन सज्जन के तेवर नरम होने लगे हालांकि उनके वह सवालों की एक लंबी लिस्ट साथ लाए थे , लेकिन अरमान के सभी जवाबों ने उसको इतना संतुष्ट कर दिया कि वह जाने से पहले पिताजी से बोले कि मैं भी अब तक यही सोचता था कि आप इसे कहानियां और लघुकथाएं लिख कर देते हैं , लेकिन आज मुझे इस से बात करके यह संतुष्टि हो रही है और ये उम्मीद की जा सकती है कि अरमान एक दिन आपके अरमान पूरे करेगा ।

इतनी कम उम्र में लेखन के प्रति उनका यह समर्पण और किसी विषय पर इतनी गहराई से विचार करके उसे किताब का रूप देना, उनके अंदर के लेखक की अदम्य इच्छाशक्ति और दृढ़ निश्चय को दर्शाता है।

 इतनी कम उम्र में एक किताब लिखना, अरमान के आत्मविश्वास, कुछ अलग करने की ललक और अपनी पहचान बनाने की प्रबल इच्छा को दर्शाता है। उनकी यह पहली किताब, उनके भविष्य के साहित्यिक योगदान की एक मज़बूत नींव साबित होगी । इस किताब ने उन्हें ना केवल एक लेखक के रूप में स्थापित किया, बल्कि उन्हें अपने विचारों को व्यक्त करने और दुनिया के सामने एक गंभीर दृष्टिकोण रखने का एक सशक्त मंच भी प्रदान किया। यह उनके लिए सिर्फ एक किताब नहीं, बल्कि अपने आंतरिक संसार को बाहरी दुनिया से जोड़ने का पहला पुल है। इस उपलब्धि ने उन्हें यह विश्वास दिलाया कि उनके शब्द मायने रखते हैं और वे एक बड़े उद्देश्य को पूरा कर सकते हैं।

 शब्दों में छिपी गहराई और सत्य की तलाश

अरमान का लिखने का अंदाज़ उनकी सबसे बड़ी और सबसे प्रभावशाली विशेषता है । उनकी आलोचना  दृष्टि केवल दोष ढूंढने या कमियाँ निकालने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका अर्थ है कि वे किसी भी विषय की ऊपरी परत पर ना रहकर, उसकी जड़ तक पहुँचने का प्रयास करते हैं। वे सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और मानवीय व्यवहार के उन अनकहे और छिपे हुए पहलुओं पर प्रकाश डालते हैं, जिन्हें अक्सर सतही तौर पर या बिना सोचे-समझे स्वीकार कर लिया जाता है। उनकी कलम से निकले शब्द, मामूली घटनाओं और विचारों को भी एक नए,गहरे और विचारोत्तेजक दृष्टिकोणसे देखने पर मजबूर करते हैं।

अरमान की आलोचनात्मक सोच उन्हें समाज की जड़ता, रूढ़िवादी परंपराओं, और स्थापित गलत धारणाओं पर निडरता से सवाल उठाने की शक्ति देती है। वे किसी भी विषय को उसके वास्तविक रूप में देखने का प्रयास करते हैं, लबिना किसी पूर्वाग्रह याभावनात्मक लगाव के। यह आलोचनात्मक और वस्तुनिष्ठ दृष्टि ही उनकी ललेखनी को केवल मनोरंजक नहीं, बल्कि lप्रभावशाली, lविचारोत्तेजक और कभी-कभी चुनौती-पूर्ण लभी बनाती है। वे समस्याओं को सिर्फ पहचानते नहीं, बल्कि उनके पीछे के गहरे कारणों, उनके सामाजिक-मनोवैज्ञानिक प्रभावों और उनके संभावित दीर्घकालिक परिणामों का भी गहन विश्लेषण करते हैं। उनके लेख अक्सर पाठकों को अपने आस-पास की दुनिया पर पुनर्विचार करने, स्थापित धारणाओं पर सवाल उठाने और अपने दृष्टिकोण को अधिकव्यापक बनाने के लिए प्रेरित करते हैं। उनका मुख्य उद्देश्य केवल जानकारी देना नहीं,बल्कि जागरूकता बढ़ाना और एक सोचने वाला, प्रश्न करने वाला लसमाज बनाना है। इस आलोचनात्मक दृष्टिकोण के कारण ही उनके लेखनमें एक परिपक्वता और गहराई दिखती है जो उनकी उम्र से कहीं अधिक है।

लेखन के अलावा, अरमान नदीम इस समय इंटरव्यू के माध्यम से विभिन्न लोगों से सीधा संवाद स्थापित करने में सक्रिय हैं। यह कार्य उनके लेखक के रूप में विकास का एक बहुत ही महत्वपूर्ण चरण है, जो उनकी सामाजिक संवेदनशीलता और मनुष्य को समझने की गहरी जिज्ञासा को दर्शाता lहै। इंटरव्यू लेना, केवल सवाल पूछना नहीं, बल्कि दूसरे व्यक्ति के अनुभवों, भावनाओं और दृष्टिकोण को गहराई से समझने और उनके साथ एक संवेदनशील मानवीय रिश्ता बनाने की कला है। अरमान इसके ज़रिए समाज के विभिन्न वर्गों, पेशों और पृष्ठभूमि के लोगों की कहानियों को बाहर ला रहे हैं। वे उनकी जिंदगियों के अनकहे और अनसुने पहलुओं को समझ रहे हैं और उन्हें एक ऐसा मंच प्रदान कर रहे हैं जहाँ उनकी आवाज़ें सुनी जा सके , जहाँ उनके संघर्षों और सफलताओं को पहचान मिल सके।

यह संवाद प्रक्रिया उनकी लेखनी को और भी समृद्ध करती है, क्योंकि वे वास्तविक जीवन के अनुभवों, विभिन्न दृष्टिकोणों और सामाजिक चुनौतियों को अपनी रचनाओं में शामिल कर पाते हैं। यह उन्हें समाज के दबे-कुचले वर्गों की आवाज़ बनने का अवसर देता है, या उन लोगों के अनुभवों को उजागर करने का जिनके कथन अक्सर अनसुने रह जाते हैं। इस तरह, अरमान एक लेखक होने के साथ-साथ, एक सामाजिक सरोकारों से जुड़े  एक सचेत नागरिक, और एक सक्रिय पत्रकार की भूमिका भी निभा रहे हैं। उनके इंटरव्यू केवल एक व्यक्ति की कहानी नहीं होते, बल्कि वे उस सामाजिक ढाँचे और व्यवस्था की एक झलक होते हैं जिसमें वह व्यक्ति जी रहा होता है। यह एक प्रकार से समाज के विभिन्न पहलुओं का एक जीवंत दस्तावेज़ है, जिसे अरमान अपनी कलम और संवाद के माध्यम से अखंडित रूप से संजो रहे हैं। इससे वे न केवल लोगों को एक-दूसरे से जोड़ते हैं, बल्कि समाज में सहानुभूति और मानवीय समझ की भावना को भी बढ़ावा देते हैं। वे मानते हैं कि हर व्यक्ति के पास कहने के लिए एक अनूठी कहानी होती है, और उन कहानियों को सुनना और साझा करना ही समाज को अधिक समावेशी और जागरूक बनाता है।

साक्षात्कार विधा में कुछ नया करने की प्रेरणा वरिष्ठ साहित्यकार, संपादक और केंद्रीय साहित्य अकादेमी नई दिल्ली में राजस्थानी भाषा परामर्शक मंडल के संयोजक रहे मधु आचार्य आशावादी से मिली । मधु जी ने इस क्षेत्र में अरमान को बेहतरीन मार्गदर्शन प्रदान किया ।

अरमान नदीम का साहित्यिक और सामाजिक सफर अभी जारी है, और उनकी प्रतिभा, आलोचनात्मक सोच, और सामाजिक ज़िम्मेदारी की प्रबल भावना उन्हें भविष्य में और भी बड़ी उपलब्धियाँ दिलाएगी। बीकानेर के इस युवा लेखक की कलम में इतनी शक्ति है कि वह न केवल कहानियों को जीवंत रूप देती है, बल्कि समाज में विचार-परिवर्तन और जागरूकता की एक नई लहर भी पैदा कर सकती है। उनका मुख्य उद्देश्य केवल लिखना नहीं, बल्कि लिखने और संवाद के माध्यम से समाज में सकारात्मक बदलाव लाना है। वे उन असंख्य युवाओं के लिए एक प्रेरणा हैं जो अपने शब्दों और विचारों के माध्यम से दुनिया को एक बेहतर जगह बनाना चाहते हैं।

अरमान नदीम का हर शब्द, उनके संपूर्ण अस्तित्व की एक गहरी झलक है – एक सोचने वाला, एक सवाल करने वाला, एक समझने वाला, और सबसे बढ़कर, एक गहन और अर्थपूर्ण संवाद स्थापित करने वाला व्यक्ति। वे सिर्फ लिखते नहीं, वे जीते हैं, वे महसूस करते हैं, और वे अपने आस-पास की दुनिया को गहरी संवेदनशीलता और आलोचनात्मक दृष्टि से देखते हैं। उनकी यह अनूठी यात्रा, साहित्य और समाज दोनों के लिए एक नया मार्ग प्रशस्त करती है, जहाँ शब्द केवल वर्णन का माध्यम नहीं, बल्कि परिवर्तन का शक्तिशाली उपकरण बनते हैं। उनका भविष्य अत्यंत उज्जवल है, और उनकी कलम की शक्ति और भी तीव्र होती जाएगी, समाज को नए दिशा-निर्देश और प्रेरणा प्रदान करते हुए।

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ज़ैनब कॉटेज, बड़ी कर्बला मार्ग, चौखूंटी, बीकानेर 334001

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